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शिक्षक दिवस:2023


विद्यार्थियों के लिए... प्रिय छात्र-छात्राओं, मैं चाहती हूँ कि आप अपने विचारों को लेकर बिल्कुल स्पष्ट रहें।एकदम क्रिस्टल क्लीयर।जीवन में जो कुछ भी करना है और जैसे भी उसे प्राप्त करना है,उसे लेकर मन में कोई द्वन्द्व न हो। अपने निर्णय स्वयं लेने का अभ्यास करें।सफल हों तो स्वयं को धन्यवाद देने के साथ उन सभी को धन्यवाद दीजिये जिन्होंने आपपर प्रश्न उठायें,आप की क्षमताओं पर शंका किया।किंतु जिन्होंने धूलीबराबर सहयोग दिया हो,उसको बदले में खूब स्नेह दीजिएगा। अपने लिये गये निर्णयों में असफलता हाथ लगे तो उसे स्वीकार कीजिये कि मैं असफल हो गया/हो गई।मन में बजाय कुंठा पालने के दुख मनाइएगा और यह दुख ही एकदिन आपको बुद्ध सा उदार और करूणाममयी बनाएगा। किसी बात से निराश,उदास,भयभीत हों तो उदास-निराश-भयभीत हो लीजिएगा।किन्तु एक समय बाद इन बाधाओं को पार कर आगे बढ़ जाइएगा बहते पानी के जैसे।रूककर न अपने व्यक्तित्व को कुंठित करियेगा,न संसार को अवसाद से भरिएगा। कोई गलती हो जाए तो पश्चाताप करिएगा किन्तु फिर उस अपराध बोध से स्वयं को मुक्त कर स्वयं से वायदा कीजिएगा कि पुनः गलती न हो और आगे बढ़ जाइएगा।रोना आये तो रो लीजियेगा।किन्तु अपने आंसुओं में दूसरे के दुख की उपेक्षा मत कीजियेगा।हमें दुख इसीलिए मिलते हैं कि हम दूसरे की पीड़ा को समझ सकें और सुख इसीलिए कि हम स्वयं को पहचान सकें। किसी को आदर्श बनाने में शीघ्रता मत कीजियेगा।किन्तु यदि बना लें तो उसके प्रति समर्पण और श्रद्धा बनाये रखिएगा तब भी जब आप उसकी किसी कमी से परिचित हों|क्योंकि वह भी मनुष्य है। तमाम असफलताओं के बाद भी अपने भीतर अपने आत्मविश्वास को बनाए रखिएगा।उसे ही अपनी हिम्मत,अपनी पूंजी बनाइएगा। पाठ्यक्रम से इतर कुछ पुस्तकें पढ़िएगा।किन्तु मनुष्यों को भी पढ़ना सीखियेगा ताकि आप छले न जाएं और वह मनुष्य भी वंचित न रह जाए जिसे आपके कुछ मीठे शब्द संबल दे सकते थें। यात्राएं कीजिएगा।चाहे अकेले,चाहे जिसके साथ मन करे।प्रकृति के विभिन्न रूपों को निहारिएगा।समय निकालकर उदय होते सूर्य को निहारें तो सूर्यास्त अवश्य ही देखिएगा।ताकि आपको पता चले कि अगर ईमानदारी और कर्मठता से जीवन को जिया हो तो डूबना भी कितना खूबसूरती से भरा हो सकता है। मैं सूर्य के जैसे ही एकदिन डूबना चाहती हूँ। पशु-पक्षियों की भाषा यूँ तो नहीं आती हमें किंतु फिर भी उन्हें ध्यान से सुनिएगा।किसी नदी,नहर,पोखर के किनारे बैठिएगा।मन करे तो कुछ अच्छी और मनोरंजक फिल्में देखिएगा।संगीत सुनिएगा।शास्त्रीय संगीत को प्रयास करिएगा कि साक्षात सुनने का अवसर मिले।सच मानिये शास्त्रीय संगीत सुनते समय प्रतीत होता है मानो स्वर्ग में बैठे हों। अपने शहर को जानने का प्रयास करियेगा।शहर की संस्कृति को बचाकर रखने का जतन करियेगा।आपको संभवतः पता हो कि शास्त्र का ज्ञान ही आनंद बनकर लोक में विभिन्न रूपों में उतरता है।वह चाहे उसके लोकपर्व-त्यौहार हों या अन्यान्य परंपरायें अथवा लोक में व्याप्त अन्य कलायें।प्रत्येक शहर के पास उसका इतिहास, धार्मिक परंपरायें और प्रकृति का कोई अंश होता है।भौतिक रूप से खूब सफल होने के बाद भी इनमें से किसी न किसी के आप वाहक बनियेगा अपनी अगली पीढ़ी के लिए। और नहीं तो कोई खेल देखिएगा।बल्कि बढ़ती उम्र में भी कोई खेल खेलते रहिएगा।बस किसी के ह्रदय के साथ मत खेलिएगा।यह आपके व्यक्तित्व को ही बेरंग नहीं बनाता,यह प्रश्न उठाता है आपके संस्कारों पर भी। ये सब करते हुए पुस्तकों के निष्कर्ष को,प्रकृति के रूपों पर,फिल्मों पर,संगीत पर कुछ लिखते रहने का प्रयास कीजिएगा।तस्वीरें उतारियेगा प्रकृति की,अपने परिवार,मित्रों की,स्वयं की।किंतु तस्वीरों में जीवन मत ढूंढियेगा।वास्तविक तस्वीर वह नहीं जो कैमरे के लैंस से ली जाती है बल्कि वास्तविक तस्वीर वही है जो मन-मस्तिष्क पर छप जाये। जो कुछ आपके पास नहीं है उसे यदि ईश्वर में विश्वास हो तो उससे निसंकोच मांगिएगा।किंतु जो कुछ मिला है या मिल रहा हो उसके लिए ईश्वर या उसके जैसी किसी समानांतर सत्ता के प्रति कृतज्ञ भी रहियेगा। अन्य का,अपने आसपास के लोगों का सहयोग कीजिएगा किंतु सहयोग करते समय पात्र-अपात्र का ध्यान भी रखिएगा।और अपना बहुत कुछ दांव लगाकर सहयोग मत करियेगा। बाजार,माॅल,बड़े शहर, बड़े स्थानों पर जाइएगा किंतु उसके आकर्षण से बच कर रहिएगा।संतुष्ट रहने का अभ्यास करिएगा।वस्तुस्थितियों को स्वानुभूत करिएगा। किसी भी बात को तुरंत न नकारें न स्वीकारें।एक्शन का रिएक्शन शीघ्रता से देने के बजाय थोड़ा रूकिएगा।तब भी लगे कि रिएक्शन देना आवश्यक है तभी दीजिएगा।जजमेंटल तो बिलकुल मत बनिएगा।हर किसी से हर किसी की निंदा मत करिएगा।और अन्यों द्वारा की जाने वाली निंदा के जाल में तो बिलकुल मत फंसिएगा।सबकी सुनिएगा छोटा हो या बड़ा।किंतु अपने मन की करिएगा। जीवन में तर्क और भावनाओं के दोनों के अपने महत्त्व हैं।हर जगह तर्क से न चलें और और हर जगह भावनाओं से भी न चलें।तर्क और भावनाओं का सुंदर समायोजन कर जीवन को इससे संचालित करने का अभ्यास कीजिएगा। लक्ष्य पाने की बहुत शीघ्रता मत करिएगा किंतु मन और देह को आलस्य से शिथिल भी मत करिएगा।जीवन में अपने लक्ष्य निश्चित कर उसी अनुरूप कुछ स्वीकार या अस्वीकार करिएगा। किसी की बातों में तुरंत न आ जाइए किंतु अन्यों की कही बातों को संज्ञान में रखियेगा और फिर नीरक्षीर विवेक से कोई निर्णय लीजियेगा।किसी के द्वारा आलोचना किये जाने पर धैर्य धारण करिएगा किंतु प्रशंसा में तो मन को बिलकुल मत बहकने दीजिएगा।प्रशंसा मीठे विष के समान होता है। जीवन में विभिन्न प्रकार के आकर्षण आपको घेरेंगे किंतु उनके चक्रव्यूह से बचिएगा।स्मरण रखियेगा कि जितना बड़ा लक्ष्य,उतनी बड़ी असफलता-आलोचना;और तो और उतना ही तीव्र आकर्षण हमें घेरता है जिससे हम अपने लक्ष्य से भटक जायें।किंतु दृष्टि सदैव अर्जुन की भांति अपने लक्ष्य पर रखियेगा। इन सबसे इतर देश-विदेश की राजनीति पर,अर्थव्यवस्था पर सूक्ष्म दृष्टि रखियेगा।धर्म-राष्ट्र के प्रति,अपने समाज-परिवार के प्रति और अपने प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझिएगा और जीवन में सदैव उच्चतर लक्ष्य निर्धारित करियेगा।निरंतर अपना मानसिक,आत्मिक विकास करते रहने पर ध्यान रखियेगा।किंतु इससे पहले अपने शरीर का ध्यान रखियेगा।शरीर स्वस्थ रहेगा तभी कुछ हासिल होगा। किसी भी प्रकार के अभिमान से बचकर रहियेगा।पद-पैसा,जाति,रंग-रूप, मृत्यु इन सबको एकदिन अपना भोजन बना लेती है हमारे अस्तित्व के साथ,इसलिए अभिमान न करियेगा किसी बात का। पुरूष होने का दंभ न भरियेगा और बहुत सारी कोमलता रखियेगा स्त्रियों के लिए मन में।स्त्री होने का अनावश्यक लाभ न उठाइयेगा।बल्कि अपने पिता,पति,पुत्र,भाई अथवा पुरूष मित्र के लिए एक सशक्त व्यक्तित्व बनियेगा।स्वयं के लिए तो बनना ही है। जीवन में धोखा मिले, प्रेम के बदले छल मिले तो भी स्वयं किसी को दे सकें तो भरोसा ही दीजिएगा।पुनः पुनः प्रेम करियेगा किंतु पुनः अपनी आत्मा के उजलेपन को सासांरिक प्रेम के रंग से मत भिगोइएगा।अपने व्यक्तित्व को कोमल बनाने के साथ इतना कठोर बनाइएगा कि फिर से छल के गंदले छींटे से आत्मा का उजलापन धूमिल न हो। लिखते समय लिखने वाले के पास अंतिम जैसा तो कुछ नहीं होता।कितना लिख दिया किंतु लगता है कितना तो बाकी रह गया‌! किंतु शेष फिर कभी…

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दिसम्बर...

  ( चित्र छत्तीसगढ़ बिलासपुर के गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय से;जहाँ पिछले दिनों कुछ समय बिताने का अवसर मिला; यूँ तो कार्य की व्यस्तता के चलते विश्वविद्यालय परिसर ठीक से घूमना तो संभव न हो सका लेकिन कुछ जगहें बस एक नज़र भर की प्रतीक्षा में होती हैं जो दिल चुरा लेती हैं, जैसे परिसर स्थित यह झील जिसके किनारे सूरज डूब रहा था और इसी के साथ डूब रहे थें बहुतों के दिल भी♥)  एक शे़र सुना था कहीं,'कितने दिलों को तोड़ती है फरवरी!यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं'!शे़र जिसका भी हो,बात बिलकुल दुरूस्त है।ह्रदय जैसे नाजुक,कोमल,निश्छल अंग को तोड़ने वाले को सजा मिलनी ही चाहिए,चाहे मनुष्य हो या मौसम।  तब ध्यान में आता है दिसम्बर!दिसम्बर जब पूरे वर्ष भर का लेखा-जोखा करना होता है लेकिन दिसम्बर में कुछ ठहरता कहाँ है?दिनों को पंख लग जाते हैं,सूरज के मार्तण्ड रूप को नज़र!सांझे बेवजह उदासी के दुशाले ओढ़ तेजी से निकलती हैं जाने कहाँ के लिए!जाने कौन उसकी प्रतीक्षा में रहता है कि ठीक से अलविदा भी नहीं कह पाता दुपहरिया उसे!जबकि लौटना उसे खाली हाथ ही होता है!वह सुन भी नहीं पाती जाने किसकी पुका

पिताजी,राजा और मैं

  तस्वीर में दिख रहे प्राणी का नाम ‘राजा’ है और दिख‌ रहा हाथ स्वयं मेरा।इनकी एक संगिनी थी,नाम ‘रानी’।निवास मेरा गांव और गांव में मेरे घर के सामने का घर इनका डेरा।दोनों जीव का मेरे पिताजी से एक अलग ही लगाव था,जबकि इनके पालक इनकी सुविधा में कोई कमी न रखतें!हम नहीं पकड़ पाते किसी से जुड़ जाने की उस डोर को जो न मालूम कब से एक-दूसरे को बांधे रहती है।समय की अनंत धारा में बहुत कुछ है जिसे हम नहीं जानते;संभवतः यही कारण है कि मेरी दार्शनिक दृष्टि में समय मुझे भ्रम से अधिक कुछ नहीं लगता;अंतर इतना है कि यह भ्रम इतना व्यापक है कि धरती के सभी प्राणी इसके शिकार बन जाते हैं।बहरहाल बात तस्वीर में दिख रहे प्राणी की चल रही है। पिताजी से इनके लगाव का आलम यह था कि अन्य घरवालों के चिढ़ने-गुस्साने से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।जबतक पिताजी न कहें,ये अपने स्थान से हिल नहीं सकते थें।पिताजी के जानवरों से प्रेम के अनेकों किस्सों में एक यह मैंने बचपन से सुन रखा था बाबा से कि जो भी गाय घर में रखी जाती,वह तब तक नहीं खाती जब तक स्वयं पिताजी उनके ख़ाने की व्यवस्था न करतें। राजा अब अकेला जीवन जीता है,उसके साथ अब उसकी सं