यह जीवन अपने आप में एक यात्रा है निरपेक्ष रूप से।
जहाँ इसको किसी अन्य यात्रा की,यात्री की,गंतव्य की आवश्यकता नहीं है।पथ की,पथिक की आवश्यकता नहीं है।जीवन निरपेक्ष रूप से ठीक वैसे ही यात्रारूप है जैसे अद्वैत का परमब्रह्म(Super Conscious)।यात्रा जीवन का स्वरूप ही है जैसे प्रकाश सूर्य का।
किंतु जीवन के आनन्तर्य में अनेकों सापेक्ष यात्राएं होती हैं, जो जीवन के इस रूप की ही पहचान करवाती हैं।
कैसी पहचान! कैसी यात्रा!
यही कि यात्राएं तो करनी पड़ेंगी चाहे अनचाही हों या चाही गई।क्योंकि अपने स्वरूप में निरपेक्ष जीवन इन सापेक्ष यात्राओं से ही गति पाती है। यही जीवन का स्वरूप है!यही इसकी पहचान!
इस लेख में मेरे जीवन से जुड़ी दो यात्राओं की दो तस्वीरें हैं।पहली जब सूरज डूब रहा था।ठीक उसी समय कहीं सच में जीवन का सूरज डूब रहा था। यह एक अनचाही यात्रा थी।
दूसरी,जब सूरज उदय हो रहा था। ठीक अगली सुबह कहीं सच में नवजीवन की पहली यात्रा की तैयारी थी।यद्यपि यह सूर्योदय होने में पांच बरस लग गयें।किंतु किसी ने ठीक ही कहा है कि'एक दिन बरसों का संघर्ष बड़े खूबसूरत तरीके से हमसे टकराता है'।
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