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भारतीय बौद्धिकता की दरिद्रता...

भारतीय बौद्धिकता अथवा भारतीय शिक्षा व्यवस्था की दरिद्रता तो देखिए!लगभग 27 वर्षों से अंग्रेजी और हिंदी में हर माह प्रकाशित होने वाली पत्रिका राजनेताओं,खिलाड़ियों,फिल्मी भांड-भांड़िनियों से नीचे गिरते हैं तो ऐसे संस्थानों और उनके रहनुमाओं को अपने मुखपृष्ठ पर स्थान देते हैं जिन्होंने शिक्षा को व्यापार बनाने और उसे बाजार के हाथों सौंप देने में अतुलनीय योगदान दिया है।जिन्होंने शैक्षणिक संस्थानों की हालत बद से बदतर करने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। 

क्या किसी विश्वविद्यालय,महाविद्यालय अथवा विद्यालय में ऐसे शिक्षक बचे ही नहीं हैं जो किसी पत्रिका के मुखपृष्ठ पर स्थान न प्राप्त कर सकें? 

बहरहाल, 

इनमें से खान महोदय की जो भाषा-शैली है पढ़ाने की,उसे हमारे यहाँ "लवंडों" की भाषा-शैली कहते हैं।यही ढंग एक शिक्षण संस्थान का शिक्षक अपना ले,तब यही समाज उल्टे उसे पढ़ाने का ढंग सिखाने लगेगा।विकास दिव्यकीर्ति जी को क्या कहा जाए! महानायक हैं इस जमाने के।इन चारों में से सबसे अधिक छद्म आवरण धारण करने वाले।बाकी दोनों तो इतने इरीटेटिंग और तर्कहीन-तथ्यहीन हैं कि उन्हें दो मिनट सुनना भी न हो पाए।किंतु ये आज के अवतार है।रील्स की दुनिया उन्हें कुछ इस तरह प्रेजेंट भी करती है। 

अब मुखपृष्ठ को आप ध्यान से देखें तो उसके नीचे लिखा है कि आनलाइन शिक्षा ने बनाया इन्हें 'स्टार'। 

लेकिन क्यों स्टार बनाया,इसपर हम विचार करेंगे!क्योंकि कोविड जैसे आपदा को इन्होंने अवसर बना लिया।और कुछ विवशता भी थी कि अब जब बच्चे कोचिंग संस्थान नहीं आ सकते तो आनलाइन शिक्षा दी जाए ताकि कमाई बंद न हो जाए!यही हुआ!कमाई और फाॅलोवर्स दोनों मिले।लोगों को लगा,अरे वाह!कितने महान!बीस हजार के कोर्स को दो हजार में दे रहे हैं।यहीं,सरकारें जब नाममात्र के फीस पर शिक्षा देती है तो विद्यार्थियों को घर से निकलकर संस्थान तक जाने में लकवा मार जाता है। 

बहरहाल, 

पत्रिका के संपादक महोदय को कोई बताए कि कोविड जैसे महामारी के समय जब सब अपने घर में दुबक कर बैठे थें तब शिक्षण संस्थानों के कई ऐसे शिक्षक थें जो न केवल आनलाइन माध्यम से पढ़ा रहे थे बल्कि समयानुसार बाहर निकल कर लोगों की मदद कर रहे थें।जबकि उनमें से कईयो ने उसी समय अपने किसी पारिवारिक सदस्य अथवा मित्र को खो दिया था।और स्टार कौन बनता है!शिक्षा के व्यापारी! 

खैर,बाजारवाद का विस्तार कुछ यूँ ही बहका कर किया जाता है।जहाँ दिख तो रहे हैं शिक्षक, लेकिन हैं ये असल में शिक्षा के व्यापारी...

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