बस तस्वीरों ने बचा रखा है जीने का कुछ सामान
सालों बाद खूब-खूब रोने का दिल कर रहा है फिर तुम्हें याद कर के।वही तड़प,वही कलपना-रोना याद आ रहा है और दिल में हूक सी उठ रही है कि तुमको फिर से पाने की अपनी कोशिशें मैने बंद क्यों कर दीं!दुख को पीते-पीते सालों बाद आज न जाने क्यों फिर से इच्छा जग रही है कि तुम्हें संदेशे भेजकर,फोन पर फोन कर के,तुम्हारे घर की चौखट पर खड़े होकर तुमसे मिन्नतें करूँ और बताऊँ कि सबकुछ ठीक नहीं हो गया है।मैं आदी नहीं हो पाई हूँ जीने की तुम्हारे बिना।मुझे नहीं पता दिन कैसे खिसकता है।रात कैसे गुजरती है।इसका हिसाब नही कि मैंने तुम्हारे बिना क्या खोया है।कुछ पाया भी या नहीं इतने दिन तुमसे बिछड़ के।ये भी बता दूँ कि कोशिशें भी लाख कीं कि कोई तो मिले जो तुम्हारी जगह भर दे।पर तबियत किसी से मिलती ही नहीं।एक लंबा अरसा हो गया है एक स्पर्श नहीं मिला जिसमें तुम्हारे जैसा जादू हो कि सब दर्द झट से उड़ जाए!मेरे सब दुखों के आंसू सूख चुके हैं किन्तु न जाने क्यों तुम्हारी प्रतीक्षा में अब तक बेदम से मेरे अंदर पड़े हैं।और मुझे तो एक लंबा अरसा हो गया संसार के जाल से मुक्त होने की कोशिशें करते।लेकिन द्वन्द्व में फंसे रहना ही मेरे जीवन का सार है।द्वन्द्व के इस दलदल से जितना निकलने का प्रयास करती हूँ,उतनी ही धंसती जाती हूँ।न जाने कौन मेरे हक में बद्दुआ पढ़ता है,निकलती भी हूँ तो दलदल फिर से खींच लेता है।
काश!बस इतना होता कि इस होली कोई रंग उड़ता हुआ तुम्हारे पास जाता और तुम्हें बताता कि इस होली घर नहीं गए तो याद आ गई दिवाली जो हमने साथ मनाई थी आखिरी बार कोई त्यौहार।और लौटकर वह रंग बस इतना बता दे कि तुम ठीक हो।मजे में हो।जहाँ तहाँ तुम्हारे जीवन में प्रसन्नता के रंग बिखरे पड़े हैं।राहों के कंटक कोई अपना चुन चुनकर हटा देता है तो एक बार फिर तुम्हें पाने की अपनी कोशिशों को मैं अपने सीने में दबाकर इस बेशर्म जिंदगी को जीने की कोशिशों में लग जाती...
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