सूरज जब थोड़े पास से गुजरा था, अपनी आग से डरा रहा था, मैने भी बिना देर किये खोलकर दिखा दिए सैकड़ों सूरज, जो रखे थे मेरे पर्स में।
'देखो, मेरे पर्स में पड़े हैं कितने सूरज!क्षोभ और अपमान का सूरज,पीडा़ और विषाद का सूरज,पीठ पर खाए चोट सूरज बन आ गए पर्स में, ह्रदय पर लगा घात धर सूरज का रुप रखें हैं पर्स में! बिछुड़ने वाले को ठीक से विदा न कर पाने का मलाल का सूरज-असमय हाथ छुड़ा लेने की वेदना का सूरज,मृत्यु और रोग के भय का सूरज! ऐसे जाने कितने सूरज पड़े हैं पर्स में इस जनम से या जाने कितने जनमों से।
और एक आखिरी, आग उगलती कलम का सूरज!जिसका कोई खरीदार, कोई प्रकाशक, कोई पढ़वइया नहीं।
अपने अंतिम दिनों में जब बुझने लगेगी तुम्हारी आग,ले जाना होगा तो ले जाना एकाध सूरज, पड़े हैं जो मेरे पर्स में।'
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