जन्म जन्मान्तर के कुचक्र में यदि समस्त प्राणियों का जीवन फंसा होगा तो कछुआ पिछले जनम में कोई मनुष्य रहा होगा जिसने अपने पीठ पर बडे़ घाव लिए होंगे! संभवतः ईश्वर घाटे में चल रहे अपने प्रेम और वफा के गोदाम का कर्ता-धर्ता कछुए के जिम्मे सौंप,चैन से सोने चले गए होंगे अपने धाम!
अपने कोमल देह पर कठोर पीठ को लादे कछुआ कदाचित् यही बताना चाहता होगा कि कोमल ह्रदय वाले को अपनी पीठ कठोर ही बनानी पड़ेगी...
...तभी दिल की तबियत ठीक रहेगी और पीठ भी छिलेगी नहीं।पीठ पर लगा कोई घाव आत्मा को दुखाएगा तो किन्तु वहाँ न भरने वाला नासूर नहीं बना पाएगा।दरअसल पीठ पर घोंपे गये प्रेम और मित्रता रूपी चाकू की नोंक ह्रदय से होते हुए आत्मा को गहरे घायल कर देती है…
यदि जन्म जन्मान्तर का खेल है अस्तित्व,तो मुक्ति भी होगी और तब प्रेम और मित्रता की चोट से मुक्त आत्मा मुक्त भी हो जाएगी।क्योंकि प्रेम और वफा से घायल आत्मा की पता नहीं मुक्ति होती भी है या नहीं!
'सारे घाव पीठ सहेगा;सारे दुख ह्रदय उठाएगा और इस तरह आत्मा निश्छल-निर्मल बचा रह जाएगा' बस इतना ही कह झट कूद गया मेरे हाथों से पानी में यह नन्हा जीव...
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