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ईश्वर...

 

🟥.ईश्वर कोई चिड़ुकवा बुजुर्ग है जो अपने ही घर के बच्चों को हंसते-खेलते देखकर चिढ़न में उन्हें पीटता है और नाम देता है हमारे कर्मों को।
🟥. ईश्वर अपने घर की सबसे बडी सन्तान है जिसे जितना भी अधिकार और सम्मान दे दो, उसके अहंकार की तुष्टिकरण नही होती और इसका बदला वह अपने छोटे भाई बहनों से लेता है।कितना भी प्रेम कर लो,करेगा धूर्तता ही।
🟥. ईश्वर कोई बेहद खराब प्रशासक है जिसकी व्यवस्था चौपट है।वह अपना काम समय पर नहीं करता जिसके कारण हमारे करमों की फल-व्यवस्था में झोल ही झोल हो गया है।
🟥. ईश्वर किसी भ्रष्ट देश का आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा बडा़ बाबू है,जब तक उसे चढावा नहीं,तब तक सब कार्य पेंडिंग।उसके बाद भी काम होने की गारंटी नहीं।
🟥. ईश्वर कोई लाड़-प्यार में बिगडा़ बच्चा है,वह वही करेगा,जो उसे नहीं करना चाहिए।
🟥. ईश्वर घूस देकर सर्वोच्च पद पाया व्यक्ति है जिसकी उगाही वह हम मनुष्यों को दंड देकर करता है।
🟥. ईश्वर ऐसा शिष्य है कि उसकी हां में हां मिलाओ तो पांव पूजेगा,डांटो तो उसे गुरु के विचारों से ही समस्या होने लगती है जिन विचारों पर वह लहालोट था कभी।
🟥.ईश्वर झगडालू औरतों के जैसे आग-लगावन है, ईष्या-द्वेष से भरा हुआ और किसी भी हद तक नुकसान पहुंचाने वाला।
🟥. ईश्वर ज्ञान के मद में चूर कोई अहंकारी पुरुष है जिसे संसार की सभी औरतें मुर्ख लगती हैं।
🟥. ईश्वर सिजोफ्रेनिया का रोगी है जिसे अपने ही बनाए मनुष्यों से डर लगता हैं और जब-तब वह इस फेर में मनुष्यों को नुकसान पहुंचाता है।
🟥. ईश्वर अल्जाइमर का रोगी है जो अपनी ही बनाई दुनिया को भूल गया है और हर जगह अव्वस्था व्याप्त हो गई है।
🟥. ईश्वर कोई ईमानदार लेकिन कमजोर,    दीन -हीन तत्व है जिसपर शैतानों ने अधिकार जमा लिया है और उन्होंने ईश्वर के बनाए संसार को विकृत कर दिया है।

यदि ईश्वर है तो... 



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दिसम्बर...

  ( चित्र छत्तीसगढ़ बिलासपुर के गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय से;जहाँ पिछले दिनों कुछ समय बिताने का अवसर मिला; यूँ तो कार्य की व्यस्तता के चलते विश्वविद्यालय परिसर ठीक से घूमना तो संभव न हो सका लेकिन कुछ जगहें बस एक नज़र भर की प्रतीक्षा में होती हैं जो दिल चुरा लेती हैं, जैसे परिसर स्थित यह झील जिसके किनारे सूरज डूब रहा था और इसी के साथ डूब रहे थें बहुतों के दिल भी♥)  एक शे़र सुना था कहीं,'कितने दिलों को तोड़ती है फरवरी!यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं'!शे़र जिसका भी हो,बात बिलकुल दुरूस्त है।ह्रदय जैसे नाजुक,कोमल,निश्छल अंग को तोड़ने वाले को सजा मिलनी ही चाहिए,चाहे मनुष्य हो या मौसम।  तब ध्यान में आता है दिसम्बर!दिसम्बर जब पूरे वर्ष भर का लेखा-जोखा करना होता है लेकिन दिसम्बर में कुछ ठहरता कहाँ है?दिनों को पंख लग जाते हैं,सूरज के मार्तण्ड रूप को नज़र!सांझे बेवजह उदासी के दुशाले ओढ़ तेजी से निकलती हैं जाने कहाँ के लिए!जाने कौन उसकी प्रतीक्षा में रहता है कि ठीक से अलविदा भी नहीं कह पाता दुपहरिया उसे!जबकि लौटना उसे खाली हाथ ही होता है!वह सुन भी नहीं पाती जाने किसकी पुका

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