मेरे बटुए में कुछ चीजें हमेशा रहती हैं, जैसे-एक पहचान पत्र, एटीएम कार्ड,एक फोटो,कुछ रूपये।रूपये इतने,कि गलती से अगर किसी को बटुआ हाथ लग भी जाए तो सिवाय गाली के कुछ न देगा।
और एक कार्ड,जिसपर अंकित है कि मैने अपने सभी अंगों को और पूरी देह को दान कर दिया है।यह इसी कारण हरदम बटुए में पड़ा रहता है कि कभी मृत्यु आए तो कोई अंग खराब होने से पहले किसी आत्मा के देह रूपी वस्त्र के लिए काम आ सके।
यूं अचानक ख्याल आया कि क्या देह की भी स्मृति होती है!उसे भी याद होगा कोई आत्मीय स्पर्श!किसी प्रिय के गले लगने पर बस गई होगी आत्मा के साथ उसके देह में भी उसकी गंध!
नहीं पता।कुछ भी तो नहीं पता।
लेकिन देह और चेतना का जो मेल ‘मेरे’,’मैं’ के रूप में है,इससे पहले कि बिछुडे, यही चाहत मैं हर अंग में भर देना चाहती हूं कि मेरी आंखें जब खुले कहीं और, तब देखे प्रकृति को सहचरी के रूप में।देखे हर इंसान को करूणा की निगाह से।मुक्त रहे नज़र की वासना से।
ह्दय बना रहे सह्रदय।बस जब तब निकाल कर मत रख दे हर किसी के सामने।
ये भी कि मत बलिदान कर देना इसे अब मित्रता के नाम पर कि विकल्प हो मित्र या सांप को दूध पिलाने का,तो सांप को दूध पिलाना ही ठीक विकल्प होगा।
मस्तिष्क जब तब न पड़े बीच में,जब बात हो विश्वास देने की।पर ह्रदय रहे तैयार इस बात के लिए कि बदले में जरूरी नहीं कि भरोसा ही मिले।।
मेरे शरीर को बनाकर प्रयोगशाला, चिकित्साशास्त्र ढूंढे कोई उपचार प्रेम में पागल हो गए लोगों के लिए।तो यह बड़ी उपलब्धि हो जाएगी मेरे लिए।। और ये भी कि जब जानना हो किसी विष की मारकता, तो देह बता सके कि मित्रता सा विषैला कोई जहर नहीं बना अभी तक।
जो भी करे तो करे चिकित्सक देह के साथ।करनी हो चीड़-फाड़,बस ध्यान रखे पीठ का।उसपर पहले से ही बहुत घाव है,जो सूखे नहीं है।मुश्किल है पीठ पर चीरा लगाना,वहां कोई जगह बची नहीं है नये चीरे के लिए।मैं क्षमा चाहती हूं इसके लिए चिकित्सकों से कि यह हिस्सा कोई काम न आ सकेगा।
पीठ के उस हिस्से को, हो सके तो अंतिम संस्कार के लिए मिल जाए कि उस हिस्से को कर के अग्नि के हवाले सब जलन से मुक्त हो देह,चेतना,कर्म,कर्म संस्कार।राख बहा देगा कोई गंगा की गोद में कि जीवन भर की प्यास शायद बुझ सके।।
पर मेरा ह्रदय एकदम ठीक है।घाव के मवाद को बनने न दिया जहर,कुंठा को घर करने न दिया ह्रदय में।वह जब भी धड़केगा प्रेम का संगीत ही बजेगा।रूदन के सारे राग मैं इसीलिए अभी बजा लेना चाहती हूं अपने कलम से।।
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