गमला मात्र फूलों से भरा नही है,इसके चारों ओर बिखरा हैं अम्मा का आंचल।इसकी मिट्टी में बसी है उनके पायल की धुन।धुन जो आंगन से होते हुए ओसारे से रसोई तक एक लय में गतिशील,मानो साधना में मगन किसी योगी की सांसो की निर्मल धुन हो।इसके डंठल पर अब भी है उनके हाथों के स्पर्श,जैसे मेरे गाल पर रह गई है उनकी आखिरी छुअन।पूजा के लिए अर्पण होने जाते फूलों पर है एक शरारत भरी मुस्कान,जो अम्मा के मुझको लगाए गए डांट से उनके गालों पर खिली थी।जो खिल न पाएं है उन कलियों पर अब भी धरे है अम्मा की चिंताएं।चिंताएं,जो सब दुश्वारियों के बाद भी जीने का आधार थीं। फूलों से भरा गमला मात्र नही है,यह ड्योढी पर बैठकर प्रतीक्षा में रत सुषुप्ति और जाग्रत का संधिस्थल है।जिससे पार जाकर एक बार पुनः जीवन वहां आकर ठहरता है,जहां अम्मा हैं,उनकी गुड़ से मीठी 'बच्ची पुकारती' बोली है,बाबूजी का मंजन हाथ में लिए मौन है,आश्वस्त सी करती कि अब कहकर देखूं मैं अपनी,वह सुनेंगे और समझेंगे।गांव की सहेलियां हैं,भर दुपहरिया रास्ते की धूल फांकते।पेडों-डालों से तोड़े गए कच्चा पपीता,अमरूद-आम है।घर लौटने पर शंका से भरा मन है कि किसी ने देख लिया होगा धमाचौकडी मचाते गोल में मुझे,तो घर पहुंची होगी मुझसे पहले मेरी शिकायत।
.......................... जारी।
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