तुमने जो फूलदान लौटाया था,
मैने उसमें इक पौधा लगा दिया।
ताकि दुनिया में बची रहे थोड़ी सी मोहब्बत,
आंखों का पानी,
और देह का नमक।
अपने आंसू जो तेरी आंखों में रख देती थी, उस पानी को ले,
जो उदासियाँ तुम्हारे सीने में भर देती थी,
उसको मिट्टी कर,
तुम्हारे संग के सब बीते लम्हों की खाद बनाई,
कुछ इस तरह मैने दुनिया में मोहब्बत बचाई।
और हां,मैं कांट-छांट देती हूं सब खरपतवार,
जैसे अपनी सब गलतियां तुम्हारे सामने कर लेती थी स्वीकार,
मैं गिरा देती हूं सब सूखे पत्ते,
ठीक वैसे जैसे झड़ी तुम्हारे जीवन से!
पर मैं करती हूं इंतजार बसंत का,
तब भी मैंने प्रतीक्षा की,
और मैं अनंत काल तक रहूंगी प्रतीक्षा में,
ताकि दुनिया में बची रहे थोड़ी सी वफा।।
तुमने जो फूलदान लौटाया…
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