जब मां चूमती है माथे को, वह चुंबन दरअसल आत्मा के माथे पर होता है।
जब प्यार भरता है बांहों में, देह नहीं,आत्मा सिमटती है बाहों में।
जब दोस्त देता है शाबाशी, वह आत्मा के पीठ को थपथपाता है।
मैंने अपनी आत्मा के सब स्पर्शों को खो दिया है।।
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जब मां चूमती है माथे को, वह चुंबन दरअसल आत्मा के माथे पर होता है।
जब प्यार भरता है बांहों में, देह नहीं,आत्मा सिमटती है बाहों में।
जब दोस्त देता है शाबाशी, वह आत्मा के पीठ को थपथपाता है।
मैंने अपनी आत्मा के सब स्पर्शों को खो दिया है।।
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