आज जब एकदिन के लिए ट्रेन परिचालन बंद करने का समाचार सुना तो सबसे पहले जो याद आया, वह था गांधी द्वारा लिखित पुस्तक”हिंद स्वराज”।22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू के दिन क्या महज़ 80 पृष्ठ की यह पुस्तक हम पढ़ेंगे!और उससे भी महत्वपूर्ण क्या हम अपनी अंधी और व्यर्थ की महत्वाकांक्षा पर, मशीनों पर अपनी निर्भरता पर,सुविधाभोगी वस्तुतः विलासितापूर्ण जीवनचर्या पर नियंत्रण करेंगे!जिह्वा के स्वाद लोलुपता की वृत्ति पर नियंत्रण कर सकते हैं!केवल विरोध के लिए कुछ भी खाने की वृत्ति पर कुछ भी खाने से बच सकते हैं!स्थानीय भोजन संस्कृति द्वारा आमिष भोजन के समर्थन को बंद कर सकते हैं!यह भोजन पर नियंत्रण या निरामिष भोजन की वृत्ति को अपनाने की बात इसलिए कदापि नहीं है कि सनातन धर्म में शाकाहार की बात है, हिंदूं धर्म में शाकाहार की प्रशंसा की गई है!जब सनातन धर्म का समर्थन करना होगा, तब वो भी स्पष्ट रूप से करेंगे।क्योंकि सनातन धर्म हो या श्रमण संस्कृति भारत की,अपने अपने विधान के साथ हर जगह आमिष भोजन करने का उल्लेख है, जिसके पीछे कारण यह भौगोलिक रूप से स्थान विशेष की परिस्थितियों पर भोजन के नियम तय थें या होते थे परंतु सभ्यता के आरंभिक काल में और जब ग्लोबलाइजेशन का दौर नहीं था, तब यह उचित भी था किंतु अब जब सुई से लेकर जहाज़ तक,भोग से लेकर रोग तक कुछ भी स्थानीय नहीं रह गया है तब क्या हम अपनी थाली में परोसे जा रहे भोजन की ओर भी देख सकते हैं!प्रकृति का दोहन कर भौतिक विकास के दुष्परिणाम पर विचार कर, प्रकृति का उपयोग कर, उसकी संगति में क्या खुद के आत्मिक रूप का विकास कर सकते हैं!क्योंकि परमाणु हथियारों के दौर में अधिकतर देश के पास यह सभ्यता की पहचान है, किंतु ऐसी स्थिति में कोई देश किसी पर इस तरह के हथियार नहीं प्रयोग करेगा क्योंकि व्यक्ति के साथ समष्टि की भी यह नियति है कि दोस्त और दुश्मन की पहचान न केवल दुष्कर कार्य है अपितु सबकुछ के साथ यह रिश्ता भी परिवर्तनशील है।अतः प्रलय हो कि मानव सभ्यता के संकट की,उसके अस्तित्व की पहचान मिटने कि बात हो,यह कार्य करेगा हमारी जीवनचर्या के प्रति लापरवाही,समष्टि के प्रति उपेक्षा का भाव,स्वयं के प्रति स्वयं पर आत्मनियंत्रण न होने की स्थिति।।मशीनों पर हमारी निर्भरता, जिह्वा की लोलुपवृत्ति, स्वार्थी प्रसारवादी मानसिकता(देश और व्यक्ति दोनों की)।यह भी विचारणीय है कि उन्नत से उन्नत सभ्यता नष्ट हुई है, अतीतकाल में।इतिहास की यह पुनःस्मरणीय,पुनर्विचारणीय थाती सौभाग्य अथवा दुर्भाग्य से हमारे पास विद्यमान है।क्यों न हम इस 22 मार्च हिंद स्वराज के साथ इतिहास के उन नष्ट सभ्यताओं के अध्याय को पलटकर देखें!
संकट की इस घड़ी में भारत अपनी सीमितताओं के उपरांत भी जिसतरह से संकट की स्थिति से लड़ने हेतु सावधानी और तैयारी कर रहा है, वह प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के “जनता कर्फ्यू”को सफल बनाने के आवाह्वन को तमाम विरोध,नापसंदगी के बाद भी हम सब मिलकर सफल बनावें, और एक नागरिक के कर्तव्यों का पालन करें।बचेंगे तभी तो राजनीति करेंगे..
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