समय ने एक चक्र पूरा किया है,जब देश उदासीनता, कायरता, दीनता-हीनता और आत्महीनता से उल्लास- गौरव- स्वाभिमान तथा सांस्कृतिक चेतना के तनिक जाग्रतावस्था तक पहुंचा।जब बीते कल में सदियों बाद अयोध्यावासियों ने, करोड़ों रामभक्तों ने मानसिक परतंत्रता के एक प्रतीक से मुक्त हो, अपने राजाधिराज के घर लौटने, जन्मभूमि लौटने का त्यौहार मनाया,मानो दीपों के जगमग से स्वर्ग के देवताओं के नेत्रों के चौंधियाने के साथ उनके हृदय में असीम आनंद का प्रवाह किया हो! तो घर भी लौटे थे ब्रम्हाण्डनायक। आखिरकार करोड़ों आँखों में तैर रहे भव्य मंदिर के स्वप्न को यथार्थ में परिणत होने में समस्त बाधाओं से रहित यह दिवाली जो थी।
अयोध्या ने केवल दीपक भौतिक जगत में नहीं हमारे हृदय-मस्तिष्क के तल पर भी जलाये कि भारतवर्ष अपनी जातीय- अस्मिता के प्रत्येक पहचान, प्रतीक,विरासत पर छाये अंधकार को दूर करने हेतु संकल्पबद्ध हो सके।
चिंतन- जागरण के इस स्तर पर,गौरव के इस प्रकाशपर्व तक पहुंचने में यद्यपि हमने कई सदियों की यात्रा की,लाखों जन को प्राणोत्सर्ग करते देखा।सम्पूर्ण ब्रह्मांड को गेंद की भांति हथेली में उठा लेने वाले श्री लक्ष्मण के बड़े भाई को, उस अयोध्यापूरपति को, जिसकी शक्ति हम साधारण जन के कल्पनातीत है,जिसके नेत्रों की परिधि से एक रज-कण भी दूर नहीं, करोड़ों आकाशगंगाये उनके ही विस्तारित नेत्र हैं, वह श्री राम हारे भी, दुःख भोगे भी तो अपने ही प्रजा से!
वह जो लोक नायक हैं, शक्ति की त्रयी में शिव- कृष्ण के साथ सम्मिलित हैं(जिस त्रयी पर आर्यावर्त की, भारतवर्ष की सभ्यता- संस्कृति की नींव खड़ी है,जो त्रयी इस लोक के निर्माण का उपादान- निमित्त कारण है), उसका दुःख था कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्यूंकि उसकी प्रजा सदियों की दासता के बाद भी चिन्तन- मंथन हेतु एक क्षण रुककर सोचना नहीं चाहती कि उसकी यात्रायें लगातार गलत दिशाओं में मुड़ती रही है।
पूर्ण- सजग- जागरूकता,समृद्धता, ऐश्वर्य, मानवीय मूल्यों से युक्त समाज का निर्माण पुरातन काल के छाया से मुक्ति, उससे उत्पन्न विचारों को परित्याग करने से नहीं, विरासत के चिन्हों- प्रतीकों की ओर से उदासीनता से नहीं अपितु अपने लोकनायकों के चरित्र की समझ, उसपर चिंतन-मनन, विमर्श के साथ ही गहन जीवन- संघर्ष और वैचारिक मंथन से ही जनमानस की चेतना- चिंतन जागृत होगी और सशक्त- सबल-सजग राष्ट्र के रूप में हमारी पहचान होगी।
राष्ट्र जनता की सामुहिक पहचान है, राष्ट्र के नायक, जन के नायक इस सामुहिक पहचान का प्रसार करते हैं, उस पहचान को पुख्ता करते हैं, आगामी पीढ़ियों तक उस पहचान को सहज ही प्रेषित कर देते हैं सदियाँ बीत जाने के बाद भी।अतः राष्ट्र के निर्माण में लोकनायकों की भूमिका सर्वोपरि है।
परंतु भारत ने लोकनायकों, अपनी समृद्ध वैचारिक, आत्मिक,मानसिक, भौतिक विरासत के साथ क्या किया? शिक्षा व्यवस्था के जहरीले फल खा- खिलाकर अपने ही नायकों के अस्तित्व को नकारने लगा, वास्तविक नायकों के स्वरूप को छिपाने लगा और क्षद्म नायकों का पूरा काल्पनिक इतिहास गढ़ा गया I सत्ताओं ने छद्म सेक्युलरिज्म के अंधी-गहरी खाई में अपने गौरवशाली इतिहास की कब्र बनाने में कोई कसर न छोड़ा। थोथी प्रगतिशीलता की आड़ में अपने ही मर्यादा पुरुषोत्तम को उनकी ही नगरी में एक छत न मिलने दिया।राम के नाम से सनी इस भारतवर्ष की मिट्टी से सत्तावर्ग हो कि आमजन, अपने लिए महल-अट्टालिकाएं खड़ी कीं पर मेरे श्री राम के लिए एक मंदिर निर्माण में इतने बरस लग गयें!!
परंतु हताशा के सदियों के क्षणों में, लाखों जीवन के उत्सर्ग ने अंततः उन प्रश्नों, शंकाओं, निराशाओं का उन्मूलन किया कि क्या ब्रह्मांडनायक का उनके ही नगरी में एक भवन अपनी सहज गरिमा और भव्यता के साथ स्थापित हो सकेगा।
अतः साँस्कृतिक स्वतंत्रता की इस पहली दीपोत्सव की सभी को हृदय तल की गहराईयों से अशेष, अनंत बधाई, शुभकामनाएं।।
अयोध्यापति अपने निवास लौट तो रहें हैं,पर एक प्रश्न उनके समक्ष अब भी है, हमारे समक्ष अब भी है! युगानुकूल धर्म स्थापना हेतु अपने स्वरूप- छवि को परिवर्तित कर जिस कृष्ण- कन्हैया रूप में अवतरित हुए! क्या युद्ध को अंतिम विकल्प मानने वाले उस युगनायक के धरा की स्थिति की ओर से वे आंखें मूँद लेंगे? क्या अपने आराध्य की धरा की स्थिति को जानकर भी उनकी पूजा- आराधना शांति से, एकाग्रता से कर सकेंगे? क्या उनकी तनिक जागृत प्रजा पूर्ण रुप से जागृत हो पाएगी?
हमारे यहां परंपरा है दिवाली के अगले दिन कुछ न करने,कहीं भी न जाने का,सम्भवतः यह दिवस है स्वयं में स्थिर हो जाने का।कि हम व्यष्टि के साथ समष्टिगत प्रश्नों के उत्तरों की खोज में अगले दिन से पुनः अपनी जीवन यात्रा आरंभ कर सकें I क्या हम ऐसा कर सकेंगे? इस प्रश्न के साथ पुनः दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं तथा प्रकृति का आदर,गौरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक गोवर्धनपूजा की भी शुभकामनाएं,बधाई।।
इंद्र के अहंकार का संगठनशक्ति से नाश कर आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाने वाले भगवानश्रीकृष्ण की सभी पर कृपा होII
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