जब मैं मरूं,
मुझे अंतिम विदा देने आने वाले प्रियजन,
लेकर आना संग कफन की जगह कुछ कागज और कलम।
मैं तब भी यह सवाल हल करूंगी कि कहाँ चूक हो गई समझने में?
वह कौन सा सूत्र था जो मैं न याद कर पाई?
कि जो जीते जी आते नहीं मिलने,
मृत्यु उन्हें कैसे कर बुला लाती है?
जबकि बची रहती है केवल देह,
जो कोई नाता नहीं पहचानती,कोई स्मृति नहीं रखती,
तो किससे मिलने आएं हैं?
मैं लिखूंगी कि गौतम,अहिल्या की कहानी दरअसल मेरी कहानी है।
मेरे ही अंदर है अहिल्या,मैं ही थी इन्द्र और गौतम भी,
कि पार पा न सकी मार की सेनाओं से,
चूर रही शक्ति के मद में,
भरी रही जीवन भर विद्वता के अहंकार से।
बस एक राम न आए कभी मेरी चेतना में,
कि अभी मुक्ति संभव नहीं,
अभी आना पड़ेगा लौटकर मृत्युलोक मेंमें,
अन्यथा मैं भी ले लेती जलसमाधि गंगा में।।
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