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आषाढ़ का एक दिन…


जहाँ तक मेरी नजर जा रही है, वहां तक का आसमाँ मेरा है,कि कम से कम इतना आसमाँ मेरी निगाहों की ज़द मे है।फिर अचानक किसी चमकते सितारे पर नजरों का जाना और ये स्मृत हो आना कि मेरे जीवन के अनमोल सितारों को मृत्यु ने अपना ग्रास बना आसमाँ पर टांक दिया कि जब भी मैं जमीं पर झूठे अहं से भर जाऊं, ये आसमाँ और उसके सितारे मुझे अहसास दिला सकें कि मैं कितनी खाली हूँ, मेरे पास रोशनी का एक कतरा भी नहीं है।
टूटे सितारों ने चीखकर कहा कि अधूरे प्रेम ने,जो अब कभी पूरा नहीं होगा,जीवन को भी एक अंतहीन अधूरेपन से भर दिया है।बादलों की ओट से सिसकियां भरते आसमाँ ने कहा कि अबकी ज़ब दोस्ती करना तो खुद को दांव पर मत लगाना क्योंकि आंखों में पाया जाने वाला पानी मर चुका है और बारिश की बूंदें किसी दिल के आग को नहीं बुझा सकती।
समझ नहीं आता आसमाँ पर उमड़-घूमड़कर आते ये बादल आषाढ़ के दिनों की निशानी है या आसमाँ की सतह पर उभर आये मेरे मर्मांहत ह्रदय के  किस्सों की!!

(27/06/2020)

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