माता-पिता के बाद जीवन में कुछ संबध इस अनिर्वचनीय जगत में ऐसा मिल जाए जो चित्त को निर्मल-निष्कलुष कर दे,जिसके समीप केवल बैठने भर से चित्त की ग्रन्थियां खुल जाएं,जिसका संकल्प मात्र ही इतना पूर्ण हो कि उसके चाहने भर से वह संकल्प घटित हो जाए,उनमें एक गुरु-शिष्य संबंध है।
आज जबकि मैं एक शिक्षक हूं तो सोचती हूं मुझे एक शिक्षक के रूप में कैसा होना चाहिए!निःसंदेह आप जैसा होना चाहिए। किन्तु समस्या यह है कि अब भी मुझमें कर्त्तापन का भाव है।मुझे यह भ्रम है कि मैं कुछ किसी को सीखा-बता सकती हूं,यह जानते हुए कि सिखाने का प्रयत्न करना मात्र एक भ्रामक स्थिति में स्वयं को रखना है।जो वास्तविक गुरू होता है,उसे सिखाने के लिए प्रयत्न नही करना होता।जैसे आपने कभी प्रयास नहीं किया हमसब गुरूभाई-बहनों को कुछ बताने-सिखाने का।किन्तु हमसब जीवन में अपने पैर पर खड़े हैं और जैसे भी हैं,संतुष्ट हैं।और यह मात्र आपके सद्संकल्प का प्रताप है।उस ब्रह्म की तरह जिसके चाहने मात्र से सृजन हो जाता है।जब कोई लेखन की प्रशंसा करता है,मुझे स्मरण हो आता है आपकी दी हुई स्वतंत्रता,शोध के समय अपने विचारों को लिखने की।बस बारंबार यही कहा आपने कि भाषा शुद्ध हो,शैली सरल हो,विषय गूढ़ हो।मानो बता रहे थे कि जीवनपथ पर चलते समय गिरे तो कोई बात नहीं।बस मार्ग उचित हो।लक्ष्य उच्चतम हो और चित्त सरलता से युक्त।
यदि कोई इसे पढ रहा हो तो समझे कि गुरू वह है जो अपने विचारों को कभी आपपर थोपे नहीं।हम ठीक से विचार कर सकें,बस इस योग्य बनाए।यह बड़े सौभाग्य की बात है कि आपने विचारों को थोपना तो दूर शायद ही कभी अपने विचार भी प्रकट किए हम गुरूभाई-बहनों से।मौन ही आपका माध्यम रहा कुछ कहने का।आपका सद्संकल्प ही सीढ़ी बना,जो कुछ भी हमने जीवन में प्राप्त किया।
आप जितने शांत,सौम्य,गंभीर!मैं ठीक उसके उलट वाचाल,क्रोधी,अशांत। जबकि जानती हूं संसार का स्वभाव ही है अर्थ का अनर्थ करना किन्तु तब भी शब्दों को व्यर्थ करती हुई।एक बिल्कुल विपरीत स्वभाव युक्त व्यक्ति को अपना शिष्य बनाना!आपकी कृपा इसी तरह बनी रहे अनंतकाल तक।।
गुरूपूर्णिमा हो और आपके दर्शन भी न हों,यह बहुत कचोटता है मन को।किन्तु यह सोच,धैर्य धारण करती हूं कि कहीं भी रहूं,आपका आशीष और स्नेह साथ है हरदम।
शीघ्र ही उस धाम लौटूं जहां बाबा विश्वनाथ विराजते हैं,जहां मां-पिता की स्मृतियां हैं स्थूल रूप में,जहां अब भी घर बचा है और जहां गुरू रूप में साक्षात् ब्रह्म-विष्णु-महेश विद्यमान हैं,,
इस गुरूपूर्णिमा इस इच्छा के फलित होने की आकांक्षा के साथ,,
सादर प्रणाम...🙏🙏🙏
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