Skip to main content

बिहार दिवस

 #बिहार_दिवस

सुबह से विचार बन रहा था आज के दिन कुछ लिखने का।बल्कि कहें तो रात्रि से ही,जब प्रिय आशुतोष का स्टेटस देखा।किन्तु मेरे साथ बड़ी समस्या है कि लिखने-बोलने-पढ़ने और अपने अंतर्मन में भेद न करना।जिसके साथ कभी-कभी यह विसंगति उत्पन्न हो जाती है कि मेरा पूरा प्रयास यथार्थ लिखना होता है किन्तु अन्यों को वह निराशावादी दृष्टिकोण प्रतीत होता है।यद्यपि यह विवृत प्रतीति माया का प्रिय खेल है,अतः इसकी क्या चिंता।किन्तु आज पुनः-पुनः लिखने का सोचकर भी रूक जा रही थी अपने एक प्रिय शिष्य को सोचकर।संभवतः मैं आज कुछ यथार्थवादी लिखने में अपने उस शिष्य से भय खाकर मुस्कुरा कर लिखना उपेक्षित कर रही थी।किन्तु जैसा कि विदित है कि मेरी बुद्धि जागृत होती है रात्रि के दूसरे पहर में।तब चेतना में यह विचार कौंधा कि यथार्थ के पथरीले मार्ग पर पांवों के मध्य आने वाले कांटे को चुन-चुनकर मार्ग को सुगम करना,उनपर आत्मविश्वास के फूलों को रोपना,एक शिक्षक का यह भी तो कर्तव्य है; कि जब कभी कोई भयभीत हो तो वह रूककर कुछ देर आराम कर सके,भटका हो जो तो विश्वास प्राप्त कर सके।और फिर लिखने की कुछ इच्छा मेरी भी थी। 

यद्यपि सम्पूर्णं आर्यावर्त मुझे अत्यंत प्रिय है किन्तु कुछ शहर कतिपय कारणों से अत्यंत समीप हैं मन के। बिहार पर कुछ और लिखूँ उससे पहले यह जानना आवश्यक है कि यह पवित्र ज्ञान की भूमि,कर्म की भूमि मेरी कर्मस्थली है,अतः यह मेरे लिए किसी अन्य स्थान से सर्वाधिक सम्माननीय भूमि है।हां,यूपी प्रेम है मेरा जन्मस्थान होने के कारण।यूपी माँ है तो विभिन्न समानताओं के आधार पर बिहार से मौसी जैसी अनुभूति होती है।इस दृष्टि से देखें तो दो अन्य राज्य मेरी आत्मा को गहरे प्रभावित करते हैं वह है उत्तराखण्ड!देवभूमि कहने भर के लिए नहीं है,वास्तव में है।आध्यात्मिकता हवाओं में ऐसी घुली है कि कही भी क्षणभर ठहर जाइए,चेतना मानो परिष्कृत हो उठती है स्वयंमेव।और अंत में राजस्थान!अपनी ऐतिहासिकता के कारण यह मेरी शान है,हम भारतवासियों की शान है।इसमें पाठक अपनी ओर से शंका कर सकते हैं कि फलां शहर का नाम क्यों नहीं,तो उसका सीधा सा उत्तर यह है कि मैं जिन राज्यों में घुमी हूँ,उन्हीं के अनुभवों से उपरोक्त बातें कही।क्योंकि जो भाव अनुभूत न हो,फिर भला उनमें और जड़ में क्या अंतर!तो यह लेखनी मेरे अनुभवों पर आधारित है। 

अवसर बिहारदिवस पर लिखने का है तो बिहार लौटते हैं और यह कहते हुए मन अत्यंत श्रद्धा से भर जाता है।मैं इस धरा का बखान आरंभ किस क्षेत्र से करूँ,यह सूझ नहीं रहा! आचार्य चाणक्य से ही करती हूँ,कारण कि वह भी शिक्षक और अहोभाग्य कि मैं भी शिक्षक!यद्यपि उनके पैरों के रज कण भी बराबर शिक्षकत्व उतर पाये चरित्र में तो समझूँ कि शिक्षक बनना सार्थक रहा । 

क्या कहूँ कि जीवन में कुछ बातें इतनी प्रिय रहीं और सौभाग्य से उनका सानिध्य भी प्राप्त हुआ।जिसमें एक है दर्शनशास्त्र विषय की विद्यार्थी बन पाना और जीवन से मृत्यु तक के इस विशेष यात्रा में जीवन भर इसकी विद्यार्थी बनी रहूँ,यही कामना है।तब यह बताते हुए गर्व की अनुभूति होती है कि षड्वैदिक दर्शन के पांच आचार्य यहीं इसी धरा पर हुयें।नव्य न्याय यहीं मिथिला से जन्मा!तो मंडन मिश्र की यह भूमि है।बुद्ध और महावीर की कर्मभूमि,जन्मभूमि यह धरा है।जहाँ छह और बारह वर्षों से भटक रहे बुद्ध और महावीर को ज्ञान प्राप्त हुआ।मेरी बुद्धि यदि वेदांत में रहती है तो मेरा ह्रदय बुद्ध की शरण में ही चैन पाता है।फिर यह भूमि कितनी पवित्र और सम्माननीय है मेरे लिए,यह पाठक अपनी बुद्धि अनुसार अनुमान कर सकता है और मैं केवल ठीक-ठीक अनुभूत कर सकती हूँ,लिख नही सकती। 

यह वह भूमि है जहाँ कई उपनिषद रचे गयें,जहाँ जनक ने बताया गृहस्थ होते हुए भी सन्यासी बनना!जो माता सीता की जन्मस्थली है।रामायण की सृष्टभूमि है।प्रथम बार जब बिहार आई और ज्ञात हुआ कि माता के जन्मदिवस पर यहाँ सरकारी अवकाश भी होता है तो मन खिल उठा कि माँ सबको याद हैं अब भी। 

यह वह शौर्यशाली भूमि है जहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य हुए जिन्होंने आचार्य चाणक्य की सहायता से समस्त भारत भूमि को राष्ट्र के रूप में गढ़ा और प्रथम गणतंत्र की स्थापना यहीं हुई।और भला क्या मैं शौर्यगाथा गाऊँ कि महान सम्राट समुद्रगुप्त की गर्वित करने वाली यह भूमि है,जिनके नाम उच्चरित करने से कायरता मानो कपूर की भांति उड़ जाती है। 

बहादुरी से याद आया कुंवर सिंह का नाम,जो प्रतीक और प्रमाण है कि बहादुरी उम्र के अधीन नहीं।हमारी चेतना,हमारा संकल्प निर्धारक है कि हम स्वतंत्र हैं या परतंत्र। 

संकल्प की बात उठी तो स्मरण आते हैं संकल्पशक्ति की पराकाष्ठा के सर्वोच्चतम उदाहरण दशरथ मांझी, जिनके पर्वत जैसे दृढ़ संकल्प ने दृढता के पर्याय पहाड़ों को ही काटकर उसपर रस्ता बना दिया। प्रेम में महल ही नहीं, रस्ते भी बनाए जा सकते हैं, जिसमें किसी के हाथों को काटना भी नहीं पड़ता। 

यूँ तो उत्तर प्रदेश और बिहार में भाषा,बोली, राजनीति,खानपान,रीतिरिवाज,विविध कलाओं की दृष्टि से बहुत समानता है किन्तु एक और महत्वपूर्ण बात जो मुझे लगती है कि उत्तर प्रदेश जहाँ सनातन की धर्मध्वजा को थामे है,उसका केंद्रबिंदु है।सनातन धर्म की चेतना के तीन प्रमुख प्रकाश स्तंभ शिव- राम- कृष्ण की नगरी है,वहीं बिहार सनातन की राजनीतिक चेतना की प्रमुख स्थली है।दोनों ही जगहों के व्यक्तियों के जरा सा स्थूल अवलोकन से आप उनमें उपरोक्त विशेषता देख भी सकते हैं। 

इस पावन भूमि की महान विभूतियों के कितने नाम गिनाऊँ और किन- किन क्षेत्रों से गिनाऊँ! फिर भी पाठक कुछ नाम स्मरण करें इसे पढ़ते हुए,अत: कुछ नामोल्लेख आवश्यक भी प्रतीत होता है। 

यद्यपि आगे आने वाले सभी नाम स्वतंत्र रूप से लिखे जाने के अधिकारी हैं और बहुत बार लिखा भी गया है किन्तु फिर भी बहुत कुछ बाकी रह जाता है सदैव।तिसपर बहुत से क्षेत्रों पर लिखने की मैं अधिकारी भी नहीं । 

ये कुछ नाम विविध क्षेत्रों के इस प्रकार हैं-

जहाँ  एक ओर गणित में आर्यभट्ट और वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे नाम हैं,खगोलीय विज्ञान में वराहमिहिर तो आयुर्वेद में महर्षि पतंजलि।व्याकरण में पाणिनी।ज्ञान के इन विविध क्षेत्रों से जीवन के महत्वपूर्णं पक्ष काम की ओर मुड़ें तो कामशास्त्र के रचयिता वात्स्यायन भी यहीं हुएं।वही कुंवर सिंह के अतिरिक्त स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल,स्वामी सहजानंद।

 साहित्य के क्षेत्र में विद्यापति,रामधारी सिंह दिनकर,फणीश्वर नाथ रेणु,रामवृक्ष बेनीपुरी तो संगीत में भिखारी ठाकुर,महेन्दर मिसिर,विंध्यवासिनी देवी,बिसमिल्ला खां,उदित नारायण, शारदा सिन्हा।

तो राजनीति के अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र से जयप्रकाश नारायण,डॉ.राजेन्द्र प्रसाद,बाबु जगजीवन राम। 

फिल्म जगत से हम प्रकाश झा,पंकज त्रिपाठी,आनंद-मिलिंद, मनोज वाजपेयी का नाम ले सकते हैं तो दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी की जन्मस्थली भी है यहाँ।यह कुछेक नाम है,सुधीजन अपनी ओर से और भी इसे समृद्ध कर सकते हैं। 

जब कोई इन नामों को जाने और इस राज्य के भ्रमण की इच्छा जगे तो दर्शनीय स्थल के नामों का अनुमान आप बहुत कुछ उपरोक्त नामों से भी लगा सकते हैं।इनमें एक मुझे अत्यंत प्रिय है पटना का गांधी मैदान जहाँ पुस्तक मेला लगता है और पटना साहिब।यह स्थल तो ह्रदय को इतना भाता है कि जी में आता है इसी परिसर में बस जाऊँ और कभी बाहरी दुनिया के प्रपंच में फिर न पड़ूं।इसी पटना में है संकटमोचन महाराज जी का मंदिर जिसके प्रसाद का स्वाद आपकी जिह्वा से कभी न उतरेगा जो एक बार खा लिया।घूमने को तो नालन्दा,राजगिरी, बोधगया और अन्यान्य क्षेत्र भी हैं।और जो जी में आए तो मैं भी इसी बिहार के कर्मठता के पर्याय पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर की निवासी हूँ।😊

बातें,विचार,विमर्श के बिन्दु कई हैं बिहार की परिधि में,किन्तु शेष फिर कभी किसी अवसर पर,कभी मन करने पर। 

किन्तु अंत करने के पूर्व पुनः आरंभ पर चलते हैं जहाँ मैने लिखा है कि अब तक लिखना आज के दिन पर टलता रहा अपने शिष्य के भय से।किन्तु इस भय के उत्पति का सही कारण यह था कि यह मेरी इस भूमि के प्रति चिंताओं से उपजा था जिसका मैं किसी तरह किंचित निराकरण करना चाहती थी आज और मुझे विश्वास है कि इस को पढ़ने पर उस शिष्य के साथ ही अन्य अनेकों युवा जो इस बिहार से हैं वे गौरवान्वित होंगे और वर्तमान की तमाम निराशाओं, कठिनाइयों,परेशानियों के उपरांत भी अपने में नयी ऊर्जा का संचरण होता अनुभव करेंगे और अपने हिस्से के बिहार को इतना ही पवित्र-ज्ञानवान-कर्मठ-विविध कलाओं में पारंगत बनाएंगे।और हाँ,राजनीति के क्षेत्र को भी नयी दिशा देंगे। 

और इस तरह अपने हिस्से के बिहार से सनातन के विशाल समंदर को और गहरा,सनातन के आकाश को और उज्जवल करेंगे,इसी मनोकामना के साथ न केवल बिहारवासियों को अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र को बिहारदिवस की हार्दिकशुभकामनाएं...💐



Comments

Unknown said…
अद्भुत स्मरण और प्रेरणास्रोत रहा।🙏

Popular posts from this blog

दिसम्बर...

  ( चित्र छत्तीसगढ़ बिलासपुर के गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय से;जहाँ पिछले दिनों कुछ समय बिताने का अवसर मिला; यूँ तो कार्य की व्यस्तता के चलते विश्वविद्यालय परिसर ठीक से घूमना तो संभव न हो सका लेकिन कुछ जगहें बस एक नज़र भर की प्रतीक्षा में होती हैं जो दिल चुरा लेती हैं, जैसे परिसर स्थित यह झील जिसके किनारे सूरज डूब रहा था और इसी के साथ डूब रहे थें बहुतों के दिल भी♥)  एक शे़र सुना था कहीं,'कितने दिलों को तोड़ती है फरवरी!यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं'!शे़र जिसका भी हो,बात बिलकुल दुरूस्त है।ह्रदय जैसे नाजुक,कोमल,निश्छल अंग को तोड़ने वाले को सजा मिलनी ही चाहिए,चाहे मनुष्य हो या मौसम।  तब ध्यान में आता है दिसम्बर!दिसम्बर जब पूरे वर्ष भर का लेखा-जोखा करना होता है लेकिन दिसम्बर में कुछ ठहरता कहाँ है?दिनों को पंख लग जाते हैं,सूरज के मार्तण्ड रूप को नज़र!सांझे बेवजह उदासी के दुशाले ओढ़ तेजी से निकलती हैं जाने कहाँ के लिए!जाने कौन उसकी प्रतीक्षा में रहता है कि ठीक से अलविदा भी नहीं कह पाता दुपहरिया उसे!जबकि लौटना उसे खाली हाथ ही होता है!वह सुन भी नहीं पाती जाने किसकी पुका

शिक्षक दिवस:2023

विद्यार्थियों के लिए... प्रिय छात्र-छात्राओं, मैं चाहती हूँ कि आप अपने विचारों को लेकर बिल्कुल स्पष्ट रहें।एकदम क्रिस्टल क्लीयर।जीवन में जो कुछ भी करना है और जैसे भी उसे प्राप्त करना है,उसे लेकर मन में कोई द्वन्द्व न हो। अपने निर्णय स्वयं लेने का अभ्यास करें।सफल हों तो स्वयं को धन्यवाद देने के साथ उन सभी को धन्यवाद दीजिये जिन्होंने आपपर प्रश्न उठायें,आप की क्षमताओं पर शंका किया।किंतु जिन्होंने धूलीबराबर सहयोग दिया हो,उसको बदले में खूब स्नेह दीजिएगा। अपने लिये गये निर्णयों में असफलता हाथ लगे तो उसे स्वीकार कीजिये कि मैं असफल हो गया/हो गई।मन में बजाय कुंठा पालने के दुख मनाइएगा और यह दुख ही एकदिन आपको बुद्ध सा उदार और करूणाममयी बनाएगा। किसी बात से निराश,उदास,भयभीत हों तो उदास-निराश-भयभीत हो लीजिएगा।किन्तु एक समय बाद इन बाधाओं को पार कर आगे बढ़ जाइएगा बहते पानी के जैसे।रूककर न अपने व्यक्तित्व को कुंठित करियेगा,न संसार को अवसाद से भरिएगा। कोई गलती हो जाए तो पश्चाताप करिएगा किन्तु फिर उस अपराध बोध से स्वयं को मुक्त कर स्वयं से वायदा कीजिएगा कि पुनः गलती न हो और आगे बढ़ जाइएगा।रोना

पिताजी,राजा और मैं

  तस्वीर में दिख रहे प्राणी का नाम ‘राजा’ है और दिख‌ रहा हाथ स्वयं मेरा।इनकी एक संगिनी थी,नाम ‘रानी’।निवास मेरा गांव और गांव में मेरे घर के सामने का घर इनका डेरा।दोनों जीव का मेरे पिताजी से एक अलग ही लगाव था,जबकि इनके पालक इनकी सुविधा में कोई कमी न रखतें!हम नहीं पकड़ पाते किसी से जुड़ जाने की उस डोर को जो न मालूम कब से एक-दूसरे को बांधे रहती है।समय की अनंत धारा में बहुत कुछ है जिसे हम नहीं जानते;संभवतः यही कारण है कि मेरी दार्शनिक दृष्टि में समय मुझे भ्रम से अधिक कुछ नहीं लगता;अंतर इतना है कि यह भ्रम इतना व्यापक है कि धरती के सभी प्राणी इसके शिकार बन जाते हैं।बहरहाल बात तस्वीर में दिख रहे प्राणी की चल रही है। पिताजी से इनके लगाव का आलम यह था कि अन्य घरवालों के चिढ़ने-गुस्साने से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।जबतक पिताजी न कहें,ये अपने स्थान से हिल नहीं सकते थें।पिताजी के जानवरों से प्रेम के अनेकों किस्सों में एक यह मैंने बचपन से सुन रखा था बाबा से कि जो भी गाय घर में रखी जाती,वह तब तक नहीं खाती जब तक स्वयं पिताजी उनके ख़ाने की व्यवस्था न करतें। राजा अब अकेला जीवन जीता है,उसके साथ अब उसकी सं