कैसे हो?कैसी हैं?... दुनिया के कठिनतम प्रश्नों में से एक यह प्रश्न प्रतीत होता है मुझे।गणित के सवालों से भी कठिन,जिससे पीछा छुटने का मैं स्वप्न देखती रहती थी।किन्तु यह प्रश्न तो औपचारिकता/अनौपचारिकता में लगभग हर दिन ही कोई न कोई पूछ लेता है।इसके घेरे से बजाय छूटने के कभी कभी किसी एक दिन में दो -चार बार इस प्रश्न को हल करने पड़ते हैं। सच कहूं तो क्षणभर के लिए मैं सोच में पड़ जाती हूँ कि क्या उत्तर दूं?किन्तु उत्तर तो कुछ न कुछ देना ही पड़ता है क्योंकि पूछने वाला अक्सर ही जल्दी में रहता है,उसके पास इतना समय भी नहीं कि मेरे उत्तर देने के अंतराल भर के समय में रूक सके और नहीं उत्तर मिला तो अगले को लगेगा मैं अत्यंत रूखे स्वभाव की हूँ या कि संभवतः पागल/मूडी हूँ या कान से कुछ सुनाई कम देता हो! यूँ तो अगला क्या कहता या सोचता है मेरे विषय में,यह बहुधा मेरी चिंता का विषय नहीं होता।मुझे वास्तव में यह प्रश्न बड़ा बेहूदा लगता है।कठिन तो है ही!बहरहाल, कठिन इसलिए कि वो जो मेरी सलामती चाहते हैं,मेरे प्रसन्न-स्वस्थ रहने की प्रार्थना-कामना करते हैं,उनसे कैसे कहूँ कि पता नहीं,कैसी हूँ!ऐसा भला क्यों क
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