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Showing posts from March, 2022

कैसी हो?,कैसी हैं?...

  कैसे हो?कैसी हैं?... दुनिया के कठिनतम प्रश्नों में से एक यह प्रश्न प्रतीत होता है मुझे।गणित के सवालों से भी कठिन,जिससे पीछा छुटने का मैं स्वप्न देखती रहती थी।किन्तु यह प्रश्न तो औपचारिकता/अनौपचारिकता में लगभग हर दिन ही कोई न कोई पूछ लेता है।इसके घेरे से बजाय छूटने के कभी कभी किसी एक दिन में दो -चार बार इस प्रश्न को हल करने पड़ते हैं।  सच कहूं तो क्षणभर के लिए मैं सोच में पड़ जाती हूँ कि क्या उत्तर दूं?किन्तु उत्तर तो कुछ न कुछ देना ही पड़ता है क्योंकि पूछने वाला अक्सर ही जल्दी में रहता है,उसके पास इतना समय भी नहीं कि मेरे उत्तर देने के अंतराल भर के समय में रूक सके और नहीं उत्तर मिला तो अगले को लगेगा मैं अत्यंत रूखे स्वभाव की हूँ या कि संभवतः पागल/मूडी हूँ या कान से कुछ सुनाई कम देता हो!  यूँ तो अगला क्या कहता या सोचता है मेरे विषय में,यह बहुधा मेरी चिंता का विषय नहीं होता।मुझे वास्तव में यह प्रश्न बड़ा बेहूदा लगता है।कठिन तो है ही!बहरहाल,  कठिन इसलिए कि वो जो मेरी सलामती चाहते हैं,मेरे प्रसन्न-स्वस्थ रहने की प्रार्थना-कामना करते हैं,उनसे कैसे कहूँ कि पता नहीं,कैसी हूँ!ऐसा भला क्यों क

बिहार दिवस

 #बिहार_दिवस सुबह से विचार बन रहा था आज के दिन कुछ लिखने का।बल्कि कहें तो रात्रि से ही,जब प्रिय आशुतोष का स्टेटस देखा।किन्तु मेरे साथ बड़ी समस्या है कि लिखने-बोलने-पढ़ने और अपने अंतर्मन में भेद न करना।जिसके साथ कभी-कभी यह विसंगति उत्पन्न हो जाती है कि मेरा पूरा प्रयास यथार्थ लिखना होता है किन्तु अन्यों को वह निराशावादी दृष्टिकोण प्रतीत होता है।यद्यपि यह विवृत प्रतीति माया का प्रिय खेल है,अतः इसकी क्या चिंता।किन्तु आज पुनः-पुनः लिखने का सोचकर भी रूक जा रही थी अपने एक प्रिय शिष्य को सोचकर।संभवतः मैं आज कुछ यथार्थवादी लिखने में अपने उस शिष्य से भय खाकर मुस्कुरा कर लिखना उपेक्षित कर रही थी।किन्तु जैसा कि विदित है कि मेरी बुद्धि जागृत होती है रात्रि के दूसरे पहर में।तब चेतना में यह विचार कौंधा कि यथार्थ के पथरीले मार्ग पर पांवों के मध्य आने वाले कांटे को चुन-चुनकर मार्ग को सुगम करना,उनपर आत्मविश्वास के फूलों को रोपना,एक शिक्षक का यह भी तो कर्तव्य है; कि जब कभी कोई भयभीत हो तो वह रूककर कुछ देर आराम कर सके,भटका हो जो तो विश्वास प्राप्त कर सके।और फिर लिखने की कुछ इच्छा मेरी भी थी।  यद्यपि सम्प

सालों बाद...

          बस तस्वीरों ने बचा रखा है जीने का कुछ सामान  सालों बाद खूब-खूब रोने का दिल कर रहा है फिर तुम्हें याद कर के।वही तड़प,वही कलपना-रोना याद आ रहा है और दिल में हूक सी उठ रही है कि तुमको फिर से पाने की अपनी कोशिशें मैने बंद क्यों कर दीं!दुख को पीते-पीते सालों बाद आज न जाने क्यों फिर से इच्छा जग रही है कि तुम्हें संदेशे भेजकर,फोन पर फोन कर के,तुम्हारे घर की चौखट पर खड़े होकर तुमसे मिन्नतें करूँ और बताऊँ कि सबकुछ ठीक नहीं हो गया है।मैं आदी नहीं हो पाई हूँ जीने की तुम्हारे बिना।मुझे नहीं पता दिन कैसे खिसकता है।रात कैसे गुजरती है।इसका हिसाब नही कि मैंने तुम्हारे बिना क्या खोया है।कुछ पाया भी या नहीं इतने दिन तुमसे बिछड़ के।ये भी बता दूँ कि कोशिशें भी लाख कीं कि कोई तो मिले जो तुम्हारी जगह भर दे।पर तबियत किसी से मिलती ही नहीं।एक लंबा अरसा हो गया है एक स्पर्श नहीं मिला जिसमें तुम्हारे जैसा जादू हो कि सब दर्द झट से उड़ जाए!मेरे सब दुखों के आंसू सूख चुके हैं किन्तु न जाने क्यों तुम्हारी प्रतीक्षा में अब तक बेदम से मेरे अंदर पड़े हैं।और मुझे तो एक लंबा अरसा हो गया संसार के जाल से मुक्त होने

एक पुनश्चर्या पाठ्यक्रम से लौटने के उपरांत...

फरवरी के एक व्यस्त किन्तु मीठे दिन की छवि पुनश्चर्या पाठ्यक्रम से...  एक अतिव्यस्त पाठ्यक्रम के सफलतापूर्वक समापन के उपरांत जब घड़ी देखी तो 5:30 हो रहा था,उदासी बड़े मोहब्बत से मेज के पास खड़ी थी अपने बांहों के घेरे में लेने के लिए।मुझे भी लगा कि एहसास तो कर लूँ शिद्दत से कि पिछले 15 दिनों से जिनका साथ था,उनसे अब कल से भेंट नहीं होगी। तो लैपटॉप खुले ही छोड़ दिया और स्वागत किया उदासी का कि हम पन्द्रह दिनों बाद फुरसत से मिले थें। यह उदासी तब और बढ़ गई जब याद आया कि पिछले पन्द्रह दिनों से मेरे घर में चीनी की खपत कुछ कम हो गई थी किसी की मीठी बोली ने इतनी मिठास घोली थी मेरे कमरे में।किसी ने मातृत्व का ऐसा घेरा बनाया था कि इस अहसास ने मन को मनभर भारी कर दिया है कि कल से अब इस घेरे से मैं स्वतंत्र रहूंगी,जबकि चाहत ऐसी नहीं है।दिल में रह-रहकर यह बात आ रही थी कि एक दौड़ लगाऊँ और पहुँच जाऊँ बहनों के पास,भाभी के पास।  जब हम किसी भी प्रकार के आयोजन में भाग लेते हैं तो उसकी सफलता के मानक क्या होने चाहिए?एक प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेना! कुछ प्रशंसा सुन लेना!थोड़ी अपनी टूटी- फूटी,तुतलाती सी भाषा और भाव