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Showing posts from February, 2023

मेरी नींद...

इरशाद कामिल ने लिखा है,'कागा रे कागा रे मोरी इतनी अरज तोसे चुन चुन खाइयो मांस, न तू नैणा मोरे खाईयों जिसमें पिया के मिलन की आस'!  कभी कभी मुझे लगता है जैसे इसी कागा चुरा ली हो मेरी नींद हितैषी बन!कि जब तक जिऊँ पियमिलन की आस आंखों में तैरती रहे और मरूँ तो आंखें खुली रहें कि मैं सोती रहूँ और प्राण संग उड़ न जाए मिलन की आस। मैं जो सोचती हूँ कि कभी उस कागा की तलाश में निकलूँ तो पता लगता है सबकुछ अपनी जगह पर है,रास्ते भी,मंजिलें भी।किंतु कदम की ताल अब बिगड़ गई है।यूँ भी माँ कहती थी बचपन में पक्षीयों से डरने पर जब वे आंगन में उतर आते कि कहीं मेरे हाथ की रोटी छीन न ले जाए कि पंक्षियों से भला क्या डरना!वे पलभर कहीं ठहरते हैं फिर कहीं और चल देते हैं।जिस पक्षी से मैं डर रहीं हूँ वो तो अब जाने उड़कर कहाँ चली गई होगी। किंतु फिर भी मुझे सोना है खूब गहरी नींद जो जाने कब से खो गई है और मैं मानो सदियों की थकी!मुझे ऐसी नींद चाहिए जैसी माँ के गर्भ में कि माँ ने जो खाया उससे पोषण मिला,भूख मिटी,अब माँ ही दुनिया से लड़ लेगी मेरे लिए और मैं तबतक खूब गहरी नींद में सोऊं।जो यह भी न हो सके तो एक ऐसी शाम

अजनबीपन... 2

अजनीबन का एहसास एक आतंक है जो घर से निकलते ही मुझे घेर लेता है।मैं जब अपने कमरे में होती हूँ तब तक सब ठीक लगता है क्योंकि कमरे पर मेरी पुस्तकें हैं,मोबाइल है जिसपर मैं अपना पसंदीदा गाना सुन सकती हूँ,एक रसोई है जिसपर मनचाहा कुछ बना सकती हूँ।यहाँ मेरे अलावा कोई और नहीं जिससे मुझे भय हो,जो मुझे नहीं जानता,इसलिए अजनबी होने का किसी से भय भी नहीं है।  ऐसा लगता है मानो जीवन एक बियाबान जंगल है जहाँ हजारों आंखे आपको देख रहीं हों लेकिन आप उनमें से किसी को नहीं जानते।जान भी ले तो समझ की एक खाई होती है जो मेरे और सामने वाले के मध्य होती है इसलिए हम अजनबी ही रह जाते हैं।यदि कोई जानपहचान का मिल भी जाए तो मैं भय खाती हूँ कि कोई रोककर मेरा हाल चाल न पूछे क्योंकि तब मुझे झूठ कहना पड़ेगा,झूठ सुनना पड़ेगा।मैं जानती हूँ कि अपने ही द्वारा कहे गये शब्दों के साथ लोग कैसा छल करते हैं फिर भला उसके भाव,उसके अर्थ तक मैं ही कैसे पहुचुंगी जब वे स्वयं नहीं पहुंच पाते और इस तरह हजारों लोगों से घिरी मेरी दुनिया में मैं अजनबी ही रह जाती हूँ। ऐसा नहीं है कि यह मेरे दुख का कारण है,पीड़ाओं का कारण है।किंतु यह मेरे भय का