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Showing posts from March, 2021

नीत्शे...

  नीत्शे…   सत्य कुरूप होता है।हम कला की शरण में इसलिए जाते हैं कि सत्य कहीं हमारा सत्यानाश न कर दे।—–‘फ्रेडरिक नीत्शे। यह वक्तव्य देने वाले दार्शनिक नीत्शे सत्यम, शिवम,सुन्दरम को किस तरह परिभाषित करते?, प्रत्येक देश- काल-परिस्थिति-सभ्यता-संस्कृति-विचारक- दार्शनिक-साहित्यकार का अपना सत्य होता है।नीत्शे इसपर क्या कहते, या किस तरह इसे समझाते, ये तो हम और आप एक अनुमान लगा ही सकते हैं उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से।किन्तु मेरे विचार में सत्य को जानना गहनतम दुःख के बोध में डूबना है, यह दुख-बोध सत्य को जानने का तार्किक परिणाम है।एक सम्वेदनशील व्यक्ति के लिए इस जीवन और उसके हर पक्ष की नग्न सत्यता को जानने के प्रतिफल में शिव और सुंदर तक पहुंचने के पहले उसे यदि कुछ मिलता है तो वह आत्मपीडा है।और मजे की बात ये है कि संसार-सम्बंध- प्रेम- मित्रता के ताने-बाने से बुने गए इस संसार की कुरूपता में उतरने से,जीते जी इस जीवन से आत्म निर्वासित होकर जीना और यह पीड़ा भोगना अधिक श्रेयस्कर लगता है। हो सकता है इस तरह जीना सम्भवतः इसलिए ठीक लगता हो कि यह सत्य से शिव और सुंदरम तक पहुंचने का मार्ग हो! हो सक

एक दिन नेहरु युवा केन्द्र द्वारा आयोजित युवा संसद कार्यक्रम में...

कभी-कभी जब दिन और रात घने निराशा के बादलों से घिर जाता है।जब आप घर नहीं जा पाते,जबकि आप पिछले 4 महीनों से नहीं गए होते हैं,जबकि ट्रेन की टिकट कंफर्म होती है।किन्तु जिस कार्य के लिए मन को मारना पड़ा,उसमें जब असफ़लता का अंदेशा हो जाता है अथक प्रयासों के बाद भी।जब उस विषय में छात्रों के दर्शन नहीं होते जिसका नाम ही दर्शनशास्त्र है।जब उस इकाई को आप सम्पूर्णता देने में बार-बार मुँह की खाते हैं जो युवाओ को ध्यान में ही रखकर बुना गया हो। जब रात्रि निद्रा को ही अपना ग्रास बना लेती है,जब दिन अपनी पीठ बचाने में बीत जाता है कि अब कोई घाव पीठ पर नहीं लेने है।जब होली का मेरा मनभावन त्यौहार समीप हो,फिर भी घर जाने में एक हिचकिचाहट हो कि स्मरण हो आता है कि माता-पिता दोनों अब भौतिक रूप से नहीं दिखेंगे और कहीं नहीं दिखेंगे, कभी नहीं दिखेंगे चाहे घर लौटूं कि नहीं।जब इस बात पर कोफ्त होती है कि जिस जगह हूं,उसे मैंने ही स्वप्न के रूप में बुना था बचपन से,संजोया था आँखों में।और इन सब वजहों से हृदय में यह हूक उठती है कि आखिर मैं एक चेतन मन के होते हुए भी कर क्या रहीं हूं,कर क्या पा रहीं हूं और इन प्रश्नों के उ