लगभग दो दशक बाद एक दोस्त (स्कूल के दिनों में सीनियर थीं मेरी) से जब आज बात हुई तब बातचीत के मध्य जो सबसे मर्मभेदी लगा,वो उसका प्यार से बीच बीच में ये कहना कि-" मेरी अनु"!बहुत दिनों बाद शायद सुनने को मिला,"मेरी अनु"! अन्यथा तो अवचेतन स्तर में अब यही अहसास है कि अब मैं किसी की नहीं और कोई मेरा नहीं!अचानक लगा कि हमारी वय के हमलोग मित्रता भी कितनी औपचारिकता भरी करते हैं!अब कहाँ उतनी आत्मीयता से कहते हैं या कह पाते हैं कि "मेरी/मेरा "! ऐसी आत्मीयता बचपने वाली मित्रता में ही मिल सकती है।क्योंकि तब मित्रता शुद्ध भावों से होती थी अथवा कुछ अत्यंत छोटी छोटी आवश्यकताओं के कारण!एक उम्र के उपरांत संभवतः मित्रता या सामाजिक संबंध अपने अपने स्टेटस को दिखाने के लिए हम करते हैं।संभवतः यही कारण हो कि वह जुड़ाव नहीं हो पाता जो जुड़ाव बचपन में अथवा किशोरावस्था की मित्रता में होते थें। मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि उसे मेरा जन्मदिन याद था जब मैंने उससे कहा "चल झूठी"।तब उसने कहा "नहीं, मैं तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुम्हारे लिए भगवान से प्रार्थना करती हूँ"। मैंन
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