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Showing posts from March, 2023

एक पुराना दोस्त...

लगभग दो दशक बाद एक दोस्त (स्कूल के दिनों में सीनियर थीं मेरी) से जब आज बात हुई तब बातचीत के मध्य जो सबसे मर्मभेदी लगा,वो उसका प्यार से बीच बीच में ये कहना कि-" मेरी अनु"!बहुत दिनों बाद शायद सुनने को मिला,"मेरी अनु"!  अन्यथा तो अवचेतन स्तर में अब यही अहसास है कि अब मैं किसी की नहीं और कोई मेरा नहीं!अचानक लगा कि हमारी वय के हमलोग मित्रता भी कितनी औपचारिकता भरी करते हैं!अब कहाँ उतनी आत्मीयता से कहते हैं या कह पाते हैं कि "मेरी/मेरा "!  ऐसी आत्मीयता बचपने वाली मित्रता में ही मिल सकती है।क्योंकि तब मित्रता शुद्ध भावों से होती थी अथवा कुछ अत्यंत छोटी छोटी आवश्यकताओं के कारण!एक उम्र के उपरांत संभवतः मित्रता या सामाजिक संबंध अपने अपने स्टेटस को दिखाने के लिए हम करते हैं।संभवतः यही कारण हो कि वह जुड़ाव नहीं हो पाता जो जुड़ाव बचपन में अथवा किशोरावस्था की मित्रता में होते थें।  मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि उसे मेरा जन्मदिन याद था जब मैंने उससे कहा "चल झूठी"।तब उसने कहा "नहीं, मैं तुम्हारे हर जन्मदिन पर तुम्हारे लिए भगवान से प्रार्थना करती हूँ"। मैंन

छूटना...

 बहुत से लोग,बहुत सी चीजें हैं जिन्हें मैं चाहती थी कि वे सदैव मेरे साथ रहें।किंतु अब उम्र के उस पड़ाव पर हूं,जब यह भलीभाँति भान है कि 'प्रिय से वियोग' ही इस जीवन की नियति है।                  यद्यपि उम्र का वह मोड़ है जहां अब मैं किसी को बांधती नहीं,बांधने का प्रयास भी नहीं करती।न ही बांधने की कोई अतिरिक्त चाह ही है।आखिरकार कितना कुछ छूट भी तो चुका है!जाने क्या- क्या छूटना बाकी है!शहर छूटा,शहर की वह तमाम गलियां छूटीं जिसके मन करने पर जब तब फेरे लगते रहते थें।शहर के उन आत्मीयों के घर आना-जाना छूटा,वह आंगन छूटा जिसमें बैठे जाने कितने सुबहों को शाम किये थें।तमाम लोग,कई चौराहे,वह चाय की दुकान छूटी जहाँ से बिना चाय पिये घर जाना दोस्तों में पाप था।                    तो यह निश्चित है जीवन की गति और परिवर्तनशीलता के चक्र में कुछ न कुछ छूटना तो निश्चित है।अब वह आप का प्रिय है या अप्रिय, इससे जीवन को रंच मात्र अंतर नहीं पड़ता।तथापि हर बार इस प्रक्रिया में कुछ है जो कंठ तक आकर रूक जाता है।संभवतः प्राण हो! अब उसे तो अपनी उम्र पूरी करनी है सो मन मारकर कंठ से पुनः देह में व्याप्त हो जाना ह