खेल,चाहे कोई भी हो,केवल इसलिए नही भाता कि वह खेल है और हमारा मनोरंजन करता है।खेल देखना या खेलना इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि यह जीवन का आईना है।जैसे हम इस समष्टि रूपी स्वप्न में भी सोते हुए स्वप्न देखते हैं या कहें कि स्वप्न में स्वप्न देखते हैं,वैसे ही जीवन को जीते हुए खेल में जीवन के अक्स को देखना तब बहुत राहत देता है जब आप अर्श से फर्श पर होते हैं और एक लम्बी नाकामी,असफलता,आलोचना के बाद भी तमाम अटकलों,आलोचनाओं को धता बताते हुए पुनः अर्श पर जा विराजते हैं। हमारे-आपके जीवन की कहानी भी तो कुछ ऐसी ही होती है!कभी हम बुरी तरह हार जाते हैं,कभी जरा से अंतर से चूक जाते हैं!जिंदगी खूब भगाती-दौड़ाती है और हाथ आती है तब भी असफलता,निराशा-हताशा!गैरों की आलोचना,अपनों की बेरूखी!हमारे जीवन के समीक्षकों के हमारे चूक जाने का ऐलान!और एक दिन हम इन सबको गलत सिद्ध करते हुए पुनः अपने आपको मजबूती से खड़ा पाते हैं।हमें बस कोहली-पांडया की साझेदारी की तरह धैर्य के साथ अपनी जीवन की पारी को संभालकर,अश्विन की तरह समझदारी दिखाते हुए उन सब आलोचनाओं-बेरूखियो रूपी वाइड बाॅल को छोड़कर,उस अंतिम एक रन के लिए बिना किसी घब
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