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Showing posts from April, 2022

विश्व पुस्तक दिवस...

वर्जिनिया वुल्फ की लिखित एक पुस्तक है--जिसका हिन्दी अनुवाद "अपना एक कमरा"नाम से हुआ है। मैं जब बीते दिनों की ओर पलट कर देखती हूँ तो सदैव से घर में मेरा एक कोना रहा है,जिसपर मेरा एकाधिकार था और किसी को भी बिना मेरे पूछे उस कोने में प्रवेश की सख्त मनाही थी।वह कोना भरा था मेरी पुस्तकों से।उस कोने से प्रेम इस कदर था कि जरा सा कोने में स्थित आलमारी(दिवाल में बनी हुई) पर बिछे समाचार पत्र भी अगर मुड़े होते थे तो मुझे पता चल जाता था और मैं एकदम गुस्से में तमतमाते हुए पूछती थी कि किसने छुआ इस आलमारी को? तब माँ एकदम गंभीर होकर और इस चिंता में कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई उससे,कहती थी कि 'मैने केवल यह फलां सामान रखा और कुछ नहीं छुआ'।चूंकि वह फलां सामान भी मेरे लिए ही होता था इसलिए तब मैं संतोष की सांस भरती कि यह कोना एकदम सुरक्षित है।  पुस्तकों और उससे प्रेम के अनेकों किस्से हैं जीवन से जुड़े।उन किस्सों को लेकर एक पुस्तक की रचना तो हो ही सकती है।नहीं!यह इसलिए नही कि मैं ऐसा अपनी प्रशंसा में कह रही हूँ,बल्कि ऐसा इसलिए कि उन किस्सों को केन्द्र में रखकर जीवन के,रिश्तों के,मानवी

दुर्गाष्टमी एवं रामनवमी...

  दुर्गाष्टमी एवं रामनवमी पर बीते दिन की स्मृतियों में प्रवेश!मानो स्व से स्व की वह यात्रा,जिसपर हम एक साथ जाना भी चाहते हैं और नहीं भी जाना चाहते। कारण कि जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं,अपने-अपने दुखों,अपने-अपने सुखों के साथ अकेले रह जाते हैं।सुख यह की माँ-पिता की अधूरी इच्छाएं स्वयं के जीवन में यथार्थ बन उतरीं।उन अधूरी इच्छाओं ने जीवन में कुछ करने के लिए शक्ति और प्रेरणा पूरी दी।दुख यह कि उन इच्छाओं के पूरे होने के बाद भी हम अपने जीवन में अधूरे रह जाते हैं।  बहरहाल…  दुर्गाष्टमी है आज!अभी सांझ को जब गली-मोहल्ले में आज रात्रि को होने वाली पूजा के निमित्त हो रही तैयारियों की मां के बजने वाले गीतों के माध्यम से सुना तो स्मरण हो आया कि माँ अष्टमी की पूजा के लिए कई दिनों पहले से ही तैयारियों में जुट जाती थी।उस कमरे की जिसमें पूजा होना होता था,उसकी साफ-सफाई अष्टमी की सुबह से ही आरंभ हो जाती थी।मुझपर विशेष दृष्टि मां की रहती थी कि मैं कहीं कुछ गड़बड़ न करूँ।  कमरा जो साफ-सफाई से या सच में मानो माँ आज रात्रि आने वाली हों,इस सोच से कमरा एक अनोखे सुगंध से सुगंधित और तेज से आलोकित हो उठता था।म