वर्जिनिया वुल्फ की लिखित एक पुस्तक है--जिसका हिन्दी अनुवाद "अपना एक कमरा"नाम से हुआ है। मैं जब बीते दिनों की ओर पलट कर देखती हूँ तो सदैव से घर में मेरा एक कोना रहा है,जिसपर मेरा एकाधिकार था और किसी को भी बिना मेरे पूछे उस कोने में प्रवेश की सख्त मनाही थी।वह कोना भरा था मेरी पुस्तकों से।उस कोने से प्रेम इस कदर था कि जरा सा कोने में स्थित आलमारी(दिवाल में बनी हुई) पर बिछे समाचार पत्र भी अगर मुड़े होते थे तो मुझे पता चल जाता था और मैं एकदम गुस्से में तमतमाते हुए पूछती थी कि किसने छुआ इस आलमारी को? तब माँ एकदम गंभीर होकर और इस चिंता में कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई उससे,कहती थी कि 'मैने केवल यह फलां सामान रखा और कुछ नहीं छुआ'।चूंकि वह फलां सामान भी मेरे लिए ही होता था इसलिए तब मैं संतोष की सांस भरती कि यह कोना एकदम सुरक्षित है। पुस्तकों और उससे प्रेम के अनेकों किस्से हैं जीवन से जुड़े।उन किस्सों को लेकर एक पुस्तक की रचना तो हो ही सकती है।नहीं!यह इसलिए नही कि मैं ऐसा अपनी प्रशंसा में कह रही हूँ,बल्कि ऐसा इसलिए कि उन किस्सों को केन्द्र में रखकर जीवन के,रिश्तों के,मानवी
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