स्त्री एवं पुरूष,कितने अलग,कितने भिन्न...किंतु जिस व्यक्तित्व में आकर यह अंतर मिट जाता है,वह हैं कथक सम्राट बिरजू महाराज। अपने बाबा के अनेक रूपों में से हमने एक नाम सुना है,अर्धनारीश्वर का।पंडित जी मानो उसी रूप को प्रकट करने हेतु धरा पर आए थें। यदि किसी स्त्री को अपने देह की चपलता-लयात्मकता पर अभिमान हो,किसी पुरुष को अपने देह सौष्ठव पर अभिमान हो तो पंडित जी को देखने मात्र से उसका यह अभिमान मिट जाता है।उनके पद-चाप और पैर में बँधे घुँघुरूओं की आवाज एक अलग ही लोक का सृजन करती हुईं सी प्रतीत होती हैं।घुंघरूओं के झनकार से भला क्या बादल गरजते हैं!कि बिजली कड़कती है!कि कन्हैया के लिए जशोदा मैय्या पुड़ी-खीर बनाती है और कड़ाही में पुड़ी छनने की आवाजें आती हैं घुंघरूओं के झनकने से!जीवन का यह महाआनंद है कि मैं इसका उत्तर दूं,हाँ। हम साधारण मनुष्यों के भाग्य में ऐसे दिन भी आए थे जब घुंघरूओं के बजने मात्र से यह सब होता था जबकि आसमान साफ और स्वच्छ था उसदिन।और कन्हैया तो द्वापरयुग में थे जबकि हम कलियुग में ऐसा सुन रहे थे और संगीत के माध्यम से अपने कन्हैया को बड़े चाव से पुड़ी-खीर खाते देखते हैं।सामा
There is not any description.