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माते...(15/08/2021)

माते... कुछ दुर्घटनाएं जीवन में ऐसी घटती हैं जिनपर समस्त विश्व के शब्दों को खर्च कर दिया जाए,फिर भी शब्द उन भावों को  छू भी नही सकते जो ह्रदय पर आरी की तरह वक्त हर क्षण चलाता है।जैसे तुम्हारा देह त्यागना।क्या सितम है कि विदा का वह क्षण मुझ पर बीता फिर भी मैं न रीत गई! समस्त आकाश को उसके सब उत्तरदायित्वों को छोड़कर अगर यह काम दे दिया जाए कि वह विदा के क्षण तुम्हारे होंठो पर आकर जो टिक गए थे,उन सब शब्दों को सुन सके,तो अनंत ब्रह्मांड के अनंत आकाश भी उसे न सुन सकेंगे। खैर छोड़ो!कहने-सुनने में क्या रखा है!!कहने वाला वही कहता,जो उसे कहना रहता है और सुनने वाला वही सुने जो उसे सुनना चाहिए तो दुनिया की खूबसूरती में बढ़ोत्तरी ही होती।किन्तु यह संसार तो मानो फंसा हुआ है यंत्रणाओं के एक बंद बोतल में।अब ढक्कन इस बोतल की खोले कौन?कोई ईश्वर कहीं नही है।वो अलग बात है मैं हर पल उसे नकारते हुए उसे ही ढूंढ रहीं हूँ। बहरहाल,  मैं फिर वेदना का सुर पकडूं,उससे अच्छा है हम-तुम अपना हाल सुनाते हैं। यद्यपि जानती हूं तुम कैसे अपना हाल कहोगी!मेरा कैसे सुनोगी!मेरे लिखे अनेक चिट्ठियों की तरह यह भी अनपहुंचा रह ज